गण
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनगण संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. समूह । झुंड । जत्था ।
२. श्रेशी । जाति । कोटि ।
३. ऐसे मनुष्यों का समुदाय जिनमें किसी विषय में समानता हो ।
४. जैनशास्त्रानुसार एक स्थविर या आचार्य के शिष्य । महावीर स्वामी के शिष्य ।
२. वह स्थान जहाँ कोई स्थविर अपने शिष्यों को शिक्षा देता हुआ रहता हो ।
६. सेना का वह भाग जिसमें तीन गुल्म अर्थात् २७ हाथी, २७ रथ, ८१ घोड़े और १३५ पैदल हों ।
७. नक्षत्रों की तीन कोटियों में से एक । विशेष—फलित ज्योतिप के अनुसार नक्षत्रों के तीन गण हैं—देव, मनुष्य और राक्षस । अश्विनी, रेवती, पुष्य, स्वाती, हस्त, पुनर्वसु, अनुराधा, मृगशिरा और श्रवण नक्षत्र देव गण हैं । पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, उत्तरा- षाढ़, उत्तरभाद्रपद, भरणी, आर्द्रा और रोहिणी मनुष्य गण हैं और शेष चित्रा, मघा, विशाखा, ज्येठा, अश्लेषा और कृत्तिका राक्षस गण हैं ।
८. छंदःशास्त्र में तीन वर्णों का समूह । विशेष—लघु गुरु के क्रम के अनुसार गण ८ माने गए हैं, यथा— मगण—५५५ (गुरु गुरु गुरु) जैसे, माधो जू । यगण—१५५ (लघु गुरु गुरु) जैसे, सुनो रे । रगण—५१५ (गुरु लघु गुरु) ,, राम को । सगण—११५ (लघु लघु गुरु) ,, सुमिरौ । तगण—५५१ (गुरु गुरु लघु) ,, आवास । जगण—१५१ (लघु गुरु लघु) ,, विमान । भगण—५११ (गुरु लघु लघु) ,, कारण । नगण—१११ (लघु लघु लघु) ,, सुजन ।