प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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गच संज्ञा पुं॰ [अनु॰]

१. किसी नरम वस्तु में किसी कड़ी या पैनी वस्तु के धँसने का शब्द । जैसे,—गच से छुरी धँस गई । यौ॰—गचागच = बार बार धँसने का शब्द ।

२. चुने, सूरखी आदि के मेल से बना हुआ मसाला, जिससे जमीन पक्की की जाती है । उ॰—जातरूप मनिरचित अटारी । नाना रंग रुचिर गच ढारी ।—तुलसी (शब्द॰) ।

३. चूने सुरखी आदि से पिटी हुई जमीन । पक्का फर्श । लेट । उ॰— महि बहुरंग रुचिर गच काँचा । जो बिलोकि मुनिवर रुचि राँचा । तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—पीटना । यौ॰—गचकारी ।

४. पक्की छत ।

५. संग जराहत या सिलखड़ी फूँककर बनाया हुआ चूना जिसे अँगरेजी में प्लास्टर आफ पैरिस कहते हैं । उ॰—दीवारों पर गच के फूलपत्तों का सादा काम अबरख की चमक सै चाँदी के डले की तरह चमक रहा था ।—श्रीनिवास ग्रं॰, पृ॰ १७८ । विशेष—यह पत्थर राजपूताने और दक्षिण (चिंगलपेट, नेलौर आदि) में बहुत होता है । राजपूताने में खिड़की की जालियाँ बनाने में इसका उपयोग बहुत होता है । इस मसाले से मूर्तियाँ, खिलौने आदि भी बहुत अच्छे बनते हैं ।