हिन्दी सम्पादन

प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

गंधर्वनगर संज्ञा पुं॰ [गन्धर्वनगर]

१. नगर, ग्राम आदि का वह मिथ्या आभास जो आकाश में या स्थल में दृष्टिदोष से दिखाई पड़ता है । विशेष—जब गरमी के दिनों मरुभूमि या समुद्र में वायु की तहों का घनत्व उष्णाता के कारण असमान होता है, उस समय प्रकार की गति के विच्छेद से दूर के शहर, गाँव, वृक्ष, नौका आदि का प्रतिबिंब आकाश में पड़ता हैं और कभी कभी नौका आदि का प्रतिबिंब का प्रतिबिंब उलटकर पृथिवी पर पड़ता है, जिससे कभी दूर के गाँव, नगर आदि अदि या तो आकाश में उलटे टँगे या समीप दिखाई पड़ते हैं । यह दृष्टिदोष असमान तह के कारण उस समय होता है जब नीचे की त ह की वायु इतनी जल्दी हल्की हो जाती है कि उपर का वायु और उपर नहीं जा सकती । मृगमरीचिका भी दृष्टदोष से दिखाई देती हैं । गंधर्वनगर का फल बृहत्संहिता में लिखा है ।

२. मिथ्या भ्रम । ( वेदांत नमें संसार की उपमा गंधर्वनगर से दी जाती है ।)

३. चंद्रमा के किनारे का मंड़ल जो उस रात को दिखाई पड़ता है, जब आकाश हलके बादलों की तह से ढका रहता है ।

४. वह दृश्य जो कोसों तक फैली हुई नमक की चद्दरों पर सूर्य की किरणों के पड़ने से दिखाई पड़ता है ।

५. संध्या के समय पश्चिम दिशा में रंग बिरंगे बादलों के बीच फैली हुई लाली ।

६. महाभारत के अनुसार मानसरोवर के निकट का एक नगर । विशेष—इस नगर की रक्षा गंधर्व करते थे । अर्जुन ने गंधर्व- नगर को जीतकर तित्तिर, कल्माष और मंड़ूक नामक घोड़े प्राप्त किए थे ।