गंड़ा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनगंड़ा ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ गण्ड़क = गले में पहनने का जंतर]
१. वह बटा हुआ तागा जिसमें मंत्र पढ़कर गाँठ लगाई जाती है । इसे लोग रोग और भूत प्रेत की बाधा दूर करने के लिये गले में बाँधते हैं । उ॰—इसके हाथ से गंड़ा गिर गया सो यह पड़ा है ।—शकुंतला, पृ॰ १४३ । मुहा॰—गंड़ातावीज = मंत्रयंत्र । झाड़फूँक । जादूटोना । टोटका गंड़ा तावीज करना = गंड़े तावीज से इलाज करना । मंत्र यंत्र में रोग को अच्छा करना । झड़फूँक करना ।
२. वह धागा जिसे मंत्र पढ़कर रोगी के गले या हाथ में बाँधते हैं ।
३. घोड़ों के गले में पहनाने का पट्टा जिसमें कभी कभी कौड़ियाँ और घुँघरू के दाने भी गूँथे जाते हैं ।
गंड़ा ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ गण्ड़क] पैसे, कौड़ी आदि के गिनने में चार चार की संख्या का समूह । जैसे,—पाँच गंड़े कौड़ियाँ, चार गंड़े पैसे ।
गंड़ा ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ गण्ड़ = चिह्ना]
१. आड़ी लकीरों की पंक्ति जैसी कनखजूरे की पीठ पर या साँप के पेट में देखी जाती है । आड़ी धारी ।
२. तोते आदि चिड़यों के गले की रंगीन धारी । कंठा । हँसली । मुहा॰—गंड़ा पड़ना—धारी होना वा निकलना ।