वाराणसी में गंगा

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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

गंगा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ गङ्गा] भारतवर्ष की एक प्रधान नदी जो हिमालय से निकलकर १५६० मील पूर्व को बहकर बगाल की खाड़ी में गिरती है । विशेष—इसका जल अत्यंत स्वच्छ और पवित्र होता है और इसमें कभी कीड़े नहीं पड़ते । हिंदू इस नदी को परम पवित्र मानते हैं और इसमें स्नान करना पुण्य समझते हैं । पुराणों में इसे हिमालयकी पुत्री माना है और इसकी माता का नाम मनोरमा लिखा है, जो सुमेर की कन्या थी । कहते हैं, गंगा पहले स्वर्ग में थी । जब सगर के साठ हजार पुत्रों को कपिल जी ने भस्म कर डाला, तब उनके उद्धार के लिये भागीरथ गंगा जी को स्वर्ग से पृथिवी पर लाए । गंगा जब स्वर्ग से गिरी थीं, तब उन्हें शिव जी ने अपनी की जटा में धारण किया था । इसी से शिव जी की जटा में गंगा मानी जाती हैं । पृथिवी पर गिरने पर गंगा भगीरथ के साथ गंगसागर को, जहाँ कपिल जी ने सगर के पुत्रों को भस्म किया था, जा रही थीं, कि इसी बीच में जह्नु ऋषि ने उन्हें पी लिया और भगीरथ के बहुत प्रार्थना करने पर उन्हें अपने जानु से निकाला । इसी से गंगा का नाम जह्नुसुता आदि पड़ा । पुराणानुसार गंगा की तीन धाराएँ है—एक स्वर्ग में जिसे 'आकाशगंगा' कहहे हैं, दूसरी पृथिवी पर और तीसरी पाताल में । यह नदी गंगोत्तरी की पहाड़ी से जो १३, ८०० फुट ऊँची है, बर्फ के पिघलने से निकलती है और मंदाकिनी तथा अलकनंदा से मिलकर हरि— * द्वार के पास पथरीले मैदान में उतरती है । यमुना, गोमती, घाघरा, बानगंगा, गंडक आदि नदियाँ इसमें गिरती हैं । हिंदुओं के प्रधान तीर्थ काशी, प्रयाग आदि इसी के किनारे हैं । (कभी कभी साधारणत: नदी के लिये भी इस पद का प्रयोग होता है । यौ॰—गंगाधर । गंगाजल । गंगापुत्र । मुहा॰—गंगा उठाना = गंगाजल उठाकर शपथ खाना । गंगा की शपथ करना । गंगा और मदार का साथ होना = दो असम वस्तुओं या प्रवृत्तियों का साथ साथ होना । उ॰—आपका हमारा मेल जैसे गंगा और मदार का साथ ।—फिसाना॰, भा॰३, पृ॰ ४ । गंगा पार करना = देश से निकालना । गंगा नहाना = कृतार्थ होना । छुट्टी पाना । जैसे,—तुम यहाँ से जाओ, तो हम गंगा नहाएँ । गंगा दुहाई = गंगा की शपथ । गंगालाभ होना = देहावसान होना । मृत्यु प्राप्त करना । पर्या॰—विष्णुपदी । जाह्नवी । भागीरथी । त्रिपथगा । सुरनि- म्रगा । त्रिस्त्रोता । स्वरापगा । सुरापगा । अलकनंदा । मंदा- किनी । सुरनदी । अध्वगा ।