प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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खैर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ खदिर, प्रा॰ खइर, खयर]

१. एक प्रकार का बबूल । कथकीकर । सोनकीकर । विशेष—इसका पेड़ बहुत बड़ा होता है और प्राय; समस्त भारत में अधिकता से पाया जाता है । इसके हीर की लकड़ी भूरे रंग की होती हैं,घुनती नहीं और घरतथा खेती के औजार बनाने के काम में आती है । बबूल की तरह इसमें भी एक प्रकार का गोंद निकलता है और बड़े काम का होता है ।

२. इस वृक्ष की लकड़ी के टुकड़ों को उबालकर निकाला और जमाया हुआ रस जो पान में चूने के साथ लगाकर खाया जाता है । कत्था ।

खैर ^२ संज्ञा पुं॰ [देश॰] दक्षिण भारत का भूरे रंग का एक पक्षी । विशेष—लंबाई में यह एक बालिश्त से कुछ अधिक होता है और झोपड़ियों या छोटे पेड़ों में घोसला बनाकर रहता हैं । इसका घोसला प्रायः जमीन से सटा हुआ रहता है । इसकी गरदन और चोंच कुछ सफेंदी लिए होती है ।

खैर ^३ संज्ञा स्त्री॰ [फा॰ खैर] कुशल । क्षेम । भलाई । यौ॰—खैरअंदेश = हितचिंतक । शुभचिंतक । खैरअंदेशी = शुभचिंतन । भलाई चाहना । खैरआफियत । खैरख्वाह = दे॰ 'खैरखाह' । खैरख्वाही = दे॰ 'खैरखाही' । खैरोबरकत = कल्याण । समृद्धि । खैरोसलाह । खैरसल्ला = कुशलक्षेम ।

खैर ^४ अव्य

१. कुछ चिंता नहीं । कुछ परवा नहीं ।

२. अस्तु । अच्छा ।

खैर आफियत संज्ञा स्त्री॰ [फा॰ खैर—ओ—आफियत ] कुशल मंगल । क्षेंम कुशल । क्रि॰ प्र॰—कहना ।—पूछना ।