प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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खीस ^१पु वि॰ [सं॰ किष्क = वध, नाश] नष्ट । बरबाद ।— सती मरनु सुनि संमुगन, लगे करन मख खीस ।—मानस, १ ।६४ । मुहा॰—खीस जाना = नष्ट होना । उ॰—कान्ह कृपाल बडे नतयाल गए खल खेचर खीस खलाई ।—तुलसी (शब्द॰) । खीस डालना = नष्ट करना । उ॰—काहे को निगुँण ज्ञान गनत हौ जित तित डारत खीस ।—सूर (शब्द॰) ।

खीस ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ खीज]

१. अप्रसन्नता । नाराजगी ।

२. क्रोध । रोष । गुस्सा ।

खीस ^३ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ खिसिआना] 'खिसिआना' का भाव । लज्जा । शरम । क्रि॰ प्र॰—मिटाना ।

खीस ^४ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ कीश = बंदर] ओंठ से बाहर निकले हुए दाँत । मुहा॰—खीस काढना, खीस निकालना, खीस निपोरना = (१) बेढंग तौर से हँसना । (२) दीन होकर कुछ माँगना । (३) मर जाना ।

खीस ^५ संज्ञा स्त्री॰ [फा॰ खिसारह, खसारह्] घाटा । हानि । क्रि॰ प्र॰-उठाना ।—पडना ।

खीस ^६ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] गाय का वह दूध जो ब्याने के पीछे सात दिन तक निकलता है । पेउस ।