खचना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनखचना ^१पु क्रि॰ अ॰ [सं॰ खचन = बाँधना, जड़ना]
१. जड़ा जाना । उ॰—मनि दीप राजाहिं भवन भ्राजहिं देहरी विद्रुम रची । मनिखंभ भीति विरंचि बिरची कनकमनि मरकत खची । सुंदर मनोहर मंदिरायत अजिर अस्फटिकन रचे । प्रति द्धार द्धार कपाट पुरट बनाई बहु बज्रन खचे ।—तुलसी (शब्द॰) ।
२. अंकित होना । चित्रित होना । उ॰—देत भाँवरि कुंज मंडप पुलिन में बेदी रची । बैठे जो श्यामा श्याम बर त्रौलोक की शोभा खची ।—सुर (शब्द॰) ।
३. रम जाना । अड़ जाना । उ॰—आजु हरि ऐसो रास रच्यो ।— गतगुन मद अभिमान अधिक रुचि लै लोचन मन तहुहँ खच्यौ ।—सुरक॰, १० ।११३९ ।
४. अटक रहना । फँसना । उ॰—नैना पंकज पंज खचे । मोहन मदन श्याम मुख निरखत भ्रुवन विलास रचे ।—सुर (शब्द॰) ।
खचना ^२ पु क्रि॰ स॰
१. अंकित करना ।
२. जड़ना ।