खंचना पु क्रि॰ स॰ [सं॰ √कृष् प्रा॰ √खंच]
१. तृत्प होना । संतुष्ट होना । उ॰—करहा पाणी खंच पिउ त्रासा घणा सहेसि ।—ढोला॰, दु॰ ४२६ ।
२. दे॰ 'खींचना' । उ॰— (क) घायल ज्यूँ घन खचइ अंग ।—वी॰ रासो, पृ॰ १०० । (ख) द्विप दोय लक्ख धरि धातु खंचि ।—ह॰, रासो, पृ॰ ६० ।