कौवा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनकौवा संज्ञा पुं॰ [सं॰ काक, प्रा॰ काओ ] [स्त्री॰ कौवी (क्व॰)]
१. एक प्रसिद्ध पक्षी जो संसार के प्राय: सभी भागों में पाया जाता है । काक । काग । विशेष—इसकी कई जातियाँ होती हैं । पर भारत में प्राय: दो ही प्रकार के कौवे पाए जाते हैं । साधारण कौवा आकार में डेढ बालिश्त होता है । इसकी चोच लंबी और कडी होती है और पैर मजबूत होते है । इसका धड या अगला भाग खाकी और पीछे का भाग काला होता है । इसकी नाक ठीक म्ध्य में नहीं होती, कुछ किनारे हटकर हौती है । यह प्राय: वृक्षों की टहनियों पर घोंसला बनाता है । यह बैसाख से भादों तक अंडा दैता है, जिनकी संख्या ४ से ६ तक होती है । कहते हैं, यह अपने जीवन में केवल एक बार अंडे दैता है । अंडे का रंग हरा होता है और उसपर काले दाग हैते हैं । कोयल भी अपने अंडे इसी के घोंसले में रख जाती है; पर जब उसमें से बच्चा निकलता है, तब यह उसे अपने घोंसले से निकाल दैता है । दूसरे प्रकार का कौवा आकार में बडा और प्राय: एक हाथ लंबा हौता है । इसका सर्वाग बिल्कुल काला होता है । इस जाति के कौबे आपस में बहुत लडते और प्राय: एक दूसरे को मार डालते हैं । यह पूस से फागुन तक अंडे दैता है । इसे डोम कौवा कहते हैं । शेष । सब बातों में यह प्राय: साधारण कौवे से मिलता जुलता होता है । दोनों प्रकार के कौवे बहुत धूतँ होते हैं और प्राय: किसी ऐसे स्थान पर जहाँ जरा भी भय की आशंका हो, नहीं जाते । पर शहरों और गाँवो में रहनेवाले कौवे बहुत ढीठ होते हैं । साधारण कौवे जबतक अंडे देने की आवश्यकता न हों, घोंसला नहीं बनाते ।कौवे दिन के समय भोजन आदि के लिये अपने रहने के स्थान से १०-१२ कोस दूर तक निकल जाते हैं । यह प्राय: सभी खाद्द और अखाद्द पदार्थ खा जाते हैं । लोग कहते है कि इसकी केवल एक ही पुतली होती है जो आवस्यकतानुसार दोनों आँखों में घूमा करती है । यह बहुत जोर से काँव काँव शब्द करता है, जो बडा अप्रिय होता है । इसका माँस बहुत निकृष्ट होता है और मनुष्य या पशु पक्षियों के खाने योग्य नहीं होता । यौ॰—कौवा गुहार या कौवारोर = बहुत अधिक बकबक । बहुत जोर जोर मे और व्यर्थ बोलना । कागारोल । मुहा॰—कौवा गुहार में पडना या फँसना =हुल्लड या शोर में पडना । बहुत बोलनेवालों के बीच में फँसना । कौवे उडाना = व्यर्थ या अनावश्यक कार्य करना ।
२. बहुत धूर्त मनुष्य । काइयाँ ।
३. वह लकडी जो बेडेरी के सहारे के लिये लगाई जाती है । कौहा । बहुँवाँ ।
४. एक प्रकार का सरगंडे का खिलौना ।
५. गले के अंदर तालू के झालर के बीच का लटकता हुआ मांस का टुकडा + घाँटी । लंगर । ललरी । मुहा॰—कौवा उठाना = बढी या अधिक लटकी हुई घटी को दबाकर यथास्थान करना । विशेष—कभी कभी कौवा अधिक लटककर जीभ तक आ पहुँचता है, जिससे कुछ दर्द और खाने पीने में बहुत कष्ट होता है । यह दशा बाल्यावस्था में अधिक और उसके बाद कम होती है ।
६. कनकुटकी नाम का पेड । जिसकी राल दवा और रँगाइ के काम आती है ।
७. एक प्रकार की मछली जिसका मुँह बगले के मुँह की तरह हैता है । कंकत्रोट । जलव्यथ ।