प्रकाशितकोशों से अर्थ

सम्पादन

शब्दसागर

सम्पादन

कोश संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. अंड । अंडा ।

२. संपुट । डिब्बा । गोलक । जैसे, नेत्रकोश ।

३. फूलों की बँधी कली ।

४. मद्यपात्र । शराब का प्याला ।

५. पंचपात्र नामक पूजा का बरतन ।

६. तलवार, कटार आदि का म्यान ।

७. आवरण । खोल । जैसे, —बीजकोश । विशेष—वेदांती लोग मनुष्य में पाँच कोशों की कल्पना करते हैं— अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आर्नदमय । अन्न से उत्पन्न और अन्न ही के आधार पर रहने के कारण वेह को अन्नमय कहते हैं । पंच कर्मोंद्रियों के सहित प्राण, अपान आदि पंचप्राणों को प्राणमय कोश कहते हैं, जिसके साथ मिलकर देह सब क्रियाएँ करती है । श्रोत्र, चक्षु आदि पाँच ज्ञानद्रियों के सहित मन को मनोमय कोश कहते हैं । यही मनोमय कोश अविद्या रूप है और इसी से सांसारिक विषयों की प्रतीत होती है । पंच ज्ञानेद्रियों के सहित बुद्धि को विज्ञानमय कोश कहते हैं । यही विज्ञानमय कोश कर्तृत्व, भोक्तृत्व सुख- दुःख आदि अहंकारविशिष्ट पुरुष के संसार का कारण है । सत्वगुणबिशिष्ट परमात्मा के आवरक का नाम आनंदमय कोश है ।

८. थैली ।

९. संचित धन ।

१०. वह ग्रंथ जिसमें अर्थ या पर्याय के सहित शब्द इकट्ठे किए गए हों । अभिधान । जैसे, अमरकोश । मेदिनीकोश ।

११. समूह ।

१२. खान से ताजा निकला हुआ सोना या चाँदी ।

१३. अंडकोश ।

१४. योनि ।

१५. सुश्रुत के अनुसार घाव पर बाँधने की एक प्रकार की पट्टी ।

१६. एक प्रकार का पात्र जिसका व्यवहार प्राचीन काल में दो राजाओं के बीच संधि स्थिर करने में होता था ।

१७. ज्योतिष में एक योग जो शनि और वृहस्पति के साथ किसी तीसरे ग्रह के आने से होता है ।

१८. रेशम का कोया । कुसयारी ।

१९. कटहल आदि फलों का कोया ।

२०. दे॰ 'कोशपान' ।

२१. धनागार । खजाना (को॰) ।

२२. बादल । मेघ (को॰) ।

२३. लिंग । शिश्न (को॰) ।

२४. तरल वस्तुओं के रखने का पात्र । (को॰) ।