कोयला
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनकोयला ^१ संज्ञा पु॰ [सं॰ कोकिल=जलता हुआ अंगारा]
२. वह जला हुआ अंश या पदार्थ जो जली हुई लकड़ी के अगारों को बुझाने से बच रहता है ।
२. एक प्रकार का खनिज पदार्थ जो कोयले के रूप का होता हैं और जलाने के काम में आता है । विशेष—यह कई रंग और प्रकार का होता है । जहाजों और रेलों के इंजिनों तथा भट्ठों आदि में यही तक ठहरती है । इसकी आंच बहुत तेज होती है और बहुत देर तक ठहरती है । इसकी खाने संसार के प्रायः सभी भागों में पाई जाती है । बनस्पति और वृक्ष आदि के मिट्टी के नीचे दब जाने और बहुत दिनों तक उसी दशा मे पड़े रहने का कारण उनकी सड़ी लकड़ियाँ आदि जमकर पत्थर या चटटान का रूप धारण कर लेती है और अंदर की गरमी से जलकर उसे वह रूप प्राप्त होता है जिसमें वह खानों से निकलता है । इसलिए इसे पत्थर का कोयला भी कहते हैं । इसमें मिट्टी का भी कुछ अंश मिला रहता है जो इसके जल चुकने पर राख के साथ बाकी रह जाता है । मुहा॰—कोयलों पर मोहर होना=केवल छोटे और तुच्छ खरचों की अधिक जाँच पड़ताल होना । छोटे और चुच्छ पदार्थ की अधिक और अनावश्यक रक्षा होना ।
कोयला ^२ संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का बहुत बड़ा पेड़ जो आसाम में होता है । इसकी लकड़ी चिकनी, कड़ी और बहुत मजबूत होती है और इमारत के काम में आती है । इसकी पत्तियाँ रेशम के कीड़ों को खिलाई जाती हैं । इसे सोम भी कहते हैं ।