कोय पु सर्व॰ [सं॰ कोपि, हिं॰ कोई] कोई भी । उ॰—(क) जुगन, जुगन समझावत हारा, कही न मानत कोय रे ।—कबीर श॰, पृ॰ ३५ । (ख) मंदामंद बोलए सबै कोय पिबइत नीम बाँक मुँह होय ।—विद्यापति, पृ॰ २८३ ।