केसु †, केसू † संज्ञा पुं॰ [सं॰ किंशुक] ढाक । टेसूपलास । उ॰— (क) केसु कुसुम सिंदूर सम मास' केतकी धूल विथुरलह पर वास । — विद्यापति, पृ॰ १०६ । (ख) कहाँ ऐसी राँचनि हरदि केसू केसरी मैं, जैसी पियराई गात पगियै रहति है । घनानंद, पृ॰ ७१ ।