कुसुम
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनकुसुम ^१ संज्ञा पुं॰[सं॰] [वि॰ कुसुमित]
१. फूल । पुष्प ।
२. वह गद्य जिसमें छोटे छोटे वाक्य हो । जैसे—हे राम । दास पर दया करो ।
३. आँख का एक रोग ।
४. जौनियों के अनुसार वर्तमान अवसार्पिणी के छठे अर्हत् के गणधर ।
५. एक राजा का नाम ।
६. मासिक धर्म । रजोदर्शन । रज । मुहा॰—कुसुम का रोग = रजस्त्राव का रोग ।
७. छद में ठगण का छठा भेद, जिसमें लघु,, गुरु लघु, लघु (।ऽ।।) होते हैं । जैसे,—कृपा कर' । ८, एक प्रकार का फल [को॰] ।
९. अग्नि का एक भेद य रूप (को॰) ।
कुसुम ^२ संज्ञा पुं॰ [कुसुम्भ, कुसुम्बक]
१. दे॰ 'कुसुंब' ।
२. हनुमत् के मत से मेघ राग का एक पुत्र । यह षाड़व जाति का राग है और इसके गाने का समय दोपहर है ।
३. लाल रंग । जैसे—कुसुम रंग ।
कुसुम ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ कुसुम्भ] एक पौधा जो पाँच छह फुट ऊँचा होता है और जो रबी फसल के साथ खेतों में बीजों या फूलों के लिये बोया जाता है । बर्रै । विशेष—यह दो प्रकार का होता बै एक जंगली और काँटेदार, और दूसरा बिना काँटे का । जंगली कुसुम की पत्तियों की नोकों पर काँटे होते हैं और उसके बीजों से तेल निकलता है । इसके फूल पीले, लाल, गुलाबी और सफेद होते हैं । दुसरी जाति में काँटे नहीं होते अथवा बहुत कम होते हैं । इसके बीजों से तेल और फूलों से बढ़िया लाल रंग निकलता है । इसके फूल प्राय: पीलों या नारंगी रंग के होते हैं । कभी कभी बैगनी या गुलाबी रंग के फूल भी पाए जाते हैं । पीले और लाल फूल वाले कुसुम खेतों में बीज और फूल के लिये और दूसरे रंग के फूलवाले कुसुम बगीचों में शोभा के लिये लगाए जाते हैं । इसकी डालियों के सिरे पर छोटा, गोल, नुकीला ढ़ोंड़ निकलता है, जिसपर पतले पतले बहुत से फूल होते है । जो पेड़ फूल के लिये बोए जाते हैं, उनके फूल नित्य प्रात:काल चुन लिए और छाया में सुखाए जाते हैं, पर बीज के लिये बोए जाते हैं, जो पहले वृक्षों में ही लगे लगे सुख जाते हैं । चुने हुए फूल एक कपड़े में रखकर ऊपर से खार मिला हुआ जल गिराते है, जो पहले तो पीला होकर निकलता है, पर पीछे खार आदि मिलाने से वह लाल हो जाता है । इसका बीज कोल्हू में ड़ालकर पेरा जाता है और उससे जो तेल निकलता है, वह खाने, जलाने और शरीर में लगाने के काम में आता है । वैद्यक में तेल को दस्तावर माना है इसके सिवा यह कई तरह से औषधियों में काम आता है और इससे मोमजामा भी बनता है ।