प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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कुलनार संज्ञा पुं॰ [नेश॰] एक खनिज पदार्थ या पत्थर जो सफेद या कुछ सुरमई रंग लिए होता है । विशेष—इसे सिलखड़ी, संग जराहत, सफेद सुरमा और कर्पूर शिलासित भी कहते हैं । इसे भस्म करके गच या प्लास्टर आफ पेरिस बनाते हैं । इस भस्मचूर्ण में यह गुण होता है कि यह पानी पाने से लस पकड़ने लगता है और अंत में सूखने पर उसके सब कण मिलकर फिर ठोस पत्थर हो जाते हैं । इसकी मूर्तियाँ, खिलौने, इलेक्ट्रोटाइप के साँचे और बहुत सी चीजें बनती हैं । इससे शीशा भी जोड़ते हैं । कुलनार मद्रस, पंजाब, राजपूताने तथा भारतावर्ष के और कई भागों में मिलता है । जोधपुर और बोकानेर में इसकी बड़ी बड़ी खानें हैं, और इससे बहुत से काम होते हैं । इससे खिड़की की जालियाँ बड़े कौशल के साथ बनाते हैं । गच या गीले कुलनार की दो बराबर पट्टियाँ लेते हैं और उनमें एक ही नक्काशी की जालियाँ काटते हैं । फिर एक पट्टी की जालियों पर रंग बिरंग के शीशे बैठाकर ऊपर दूसरी पट्टी भी सटीक जमाकर बाँध देते हैं । इस प्रकार दोनों पट्टियाँ मिलकर एक हो जाती हैं और कटाव के बीच रंग बिरंग के शीशे दिखाई पड़ते हैं । आगरा, लाहौर आमेर आदि के शीश महल इसी गच की सहायता से बने हैं । कुलनार या सिलखड़ी का चूरा खेतों में भी खाद के लिये डाला जाता है । नील की खेती के लिये इसकी खाद बहुत उपयोगी होती है । पेशाब लाने के लिये वैद्य सिलखड़ी का चूरा दूध के साथ खिलाते हैं ।