किव पु अव्य॰[अध॰ किवँ] कैसे । उ॰— आज उमाहउ मो घणाउ, ना जाणूँ किव केण । पुरुष परायउ वीर वड़, अहइ फुरक्कि केण ।—ढोला॰, दू॰, ५१८ ।