किरण

संज्ञा

स्त्री॰

  1. यह एक प्रकार की ऊर्जा है, जिसे किसी वस्तु में टकराने के पश्चात् देखा जा सकता है। यह सूर्य, अग्नि आदि से निकलती है। यह मुख्य रूप से सीधी जाती है, लेकिन किसी अन्य वस्तु से टकराने के बाद यह मुड़ जाती है। जिससे यह फैले हुए दिखती है। कुछ वैज्ञानिक इसे तरंग भी कहते हैं। क्योंकि इसमें तरंग के समान ही गुण पाएँ जाते हैं। इसे किरण के अलावा रोशनी, उजाला आदि भी कहा जा सकता है। लेकिन किरण हमेशा एक छोटे से रेखा के जैसे दिखती है। अर्थात् यदि दोपहर के समय किसी पेड़ के नीचे देखें तो रोशनी का कुछ भाग ही नीचे आता दिखाई देता है। इसे ही किरण कहते हैं।

अनुवाद

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

किरण संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. ज्योति की अति सूक्ष्म रेखाएँ जो प्रवाह के रूप में सूर्य, चंद्र, दीपक आदि प्रज्जवलित पदार्थों से निकलकर फैलती हुई दिखाई पड़ती है । रोशनी की लकीर । प्रकाश की रेखा या धारा ।

२. अनेक प्रकार की दृश्य अदृश्य तरंगों की धाराएँ जो अंतरिक्ष से आती या यंत्रों की सहायता से उत्पन्न की जाती है; जैसे एक्स रे, अल्फा रे, अल्ट्रावायलेट रे, आदि । पर्या॰—अंशुकर । दीधित । मयूख । मरीचि । रश्मि । यौ॰—किरणपति । किरणमाली ।

२. सूर्य (को॰) । धूलिकण । रजःकण (को॰) ।