कारीगर तथा शिल्पी अपनी जिम्मेवारी पर रिश्तोदारों, साधुओं संन्यासियों तथा श्रोत्रियौं को अपने मकन में बसाते थे । यही बात व्यापारियों के करनी पड़ती थी ।