शब्दसागर

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कसम संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ कसम] शपथ । सौगंध । उ॰—वल्लाह मेरे सिर की कसम जो न पी जाओ ।—भारतेंदु ग्रं॰, भाग १ पृ॰ ५४५ । क्रि॰ प्र॰—उठाना ।—खाना ।—खिलाना । मुहा॰—कमस उतारना—(१) शपथ का प्रभाव दूर करना । खाई या दिलाई हुई शपथ के अनुसार न चलने पर उसके दोष का परिहार करना । विशेष—खेल में किसी लड़के पर जब दूसरा लड़का शपथ या कसम रख देता है तब वह कुछ वाक्य कहता है जिससे यह समझना है कि शपथ का प्रभाव दूर हो जायगा । (२) किसी काम को नाममात्र के लिये करना ।— जैसे, —कसम उतारने को वे हमारे यहाँ भी होते गए थे । कसम देना, दिलना, रखाना—किसी को शपथ द्वारा बाध्य करना । जैसे—हमारे सिर की कसम, तुम हमारे यहाँ आज आओ । (इस उदाहरण में कसम दी गई है ।) कसम लेना = कसम खिलाना । शपथ उठाने के लिये बाध्य करना । प्रतिज्ञा करना । जैसे, —तुम अपने सिर की कसम खाओ कि वहाँ न जायँगे । (इस उदाहरण में कसम ली गई है ।) किसी बात की कसम खाना—(१) किसी बात के करने की प्रतिज्ञा करना । (२) किसी बात के न करने की प्रतिज्ञा करना । जैसे, —मैने आज से वहाँ जाने की तो कसम खाई है । कसम तोड़ना = शपथ खाकर किसी कार्य को पूरा न करना । प्रतिज्ञा भंग करना । कसम खाने को = नाममात्र को । जैसे, —(क) हमारे पास कसम खाने का एक पैसा नहीं है । (क) कसम खाने को तुम भी पुस्तक हाथ में ले लो । कसम खाने के लिये = दे॰ 'कसम खाने को' । उ॰—तो कसम खाने के लिये बेशक एक जगह है ।—प्रेमघन॰, भा॰२, पृ॰ ४३९ । यौ॰—कसमाकसमी = परस्पर प्रतिज्ञा ।