कलक
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनकलक ^१ संज्ञा पुं॰ [अ॰ क़लक़]
१. बेकली । बेचनी । घबराहट । क्रि॰ प्र॰—गुजरना ।—होना ।—रहना ।—मिटना ।
२. रंज । दुःख । खेद । सोच । चिंता । उ॰—पर एक कलक होत बड़ ताता । कुसमय भये राम बिनु भ्राता ।—(शब्द॰) ।
कलक ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰] एक प्रकार की मछली ।
२. एक प्रकार का गद्य [को॰] ।
कलक ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ कल्क] दे॰ 'कल्क' ।