कल
कल आने वाले दिन और पिछले दिन दोनों को कल कहते हैं। इस शब्द के उपयोग करने के लिए भविष्य और भूतकाल के शब्द का उपयोग करना होता है। यदि हम भविष्यकाल के शब्द का उपयोग करेंगे तो यह शब्द भविष्य में आने वाला कल माना जाएगा। यदि वाक्य में प्रयोग करते समय हम इसके साथ भूतकाल का शब्द जोड़ देते हैं तो यह चले गए कल को दर्शाता है।
क्रिया विशेषण
वर्तमान दिन से पिछला दिन, अर्थात बीता हुआ दिन
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वर्तमान दिन से अगला दिन, अर्थात आने वाला दिन
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
कल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. अव्यक्त मधुर ध्वनि । जैसे—कोयल की कूक, भौंरों की गुंजार । यौ॰—कलकंठ ।
२. वीर्य ।
३. साल का पेड़ ।
४. पितरों का एक वर्ग (को॰) ।
५. शंकर । शिव (को॰) ।
६. चार मात्राओं का काल (को॰) ।
७. मात्रा (को॰) ।
कल ^२ वि॰
१. मनोहर । सुंदर । उ॰—सोमेस सूर प्रथिराज कल तिम संमुह चर बर कही ।—पृ॰ रा॰, ८ ।३ ।
२. कोमल ।
३. मधुर ।
४. कमजोर । दुर्बल (को॰) ।
५. कच्चा । अपक्व (को॰) ।
६. मधुर स्वर करनेवाला (को॰) ।
७. अस्पष्ट और मधुर । मंद मधुर (ध्वनि) (को॰) ।
कल ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ कल्य, प्रा॰ कल्ल]
२. नैरोग्य । आरोग्य । सेहत तंदुरुस्ती ।
२. आराम । चैन । सुख । उ॰—कल नहिं लेत पहरुआ, कबन बिधि जाइब हो ।—धरम॰, पृ॰ ६४ । क्रि॰ प्र॰—आना ।—पड़ना ।—पाना ।—होना । मुहा॰—कल से= चैन से । उ॰—सुवै तहाँ दिन दस कल काटी । आयउ ब्याध दूका लै टाटी ।—जायसी (शब्द॰) । †कल से= आराम से । धीरे धीरे । आहिस्ता आहिस्ता ।
३. संतोष । तुष्टि । क्रि॰ प्र॰—आना ।—पड़ना ।—पाना ।—होना ।
कल ^४ क्रि॰ वि॰ [सं॰ कल्य = प्रत्यूष, प्रभात]
१. दूसरे दिन का सबेरा । आनेवाला दिन । जैसे,—मैं कल आऊँगा । मुहा॰—कल कल करना या आज कल करना= किसी बात के लिये सदा दूसरे दिन का वादा करना । टाल मटूल करना । हीला हवाला करना ।
२. भविष्य में । पर काल में । किसी दूसरे समय । जैसे,—जो आज देगा, सो कल पावेगा ।
३. गया दिन । बीता हुआ दिन । जैसे, —वह कल घर गया था । मुहा॰—कल का= थोड़े दिन का । हाल का । जैसे, —कल का लड़का हमसे बातें करने आया है । कल की बात=थोड़े दिनों की बात । ऐसी घटना जिसे हुए बहुत दिन न हुए हों । हाल का मामला । कल की रात= वह रात जो आज से पहले बीत गई । कल की घर पर है= आगे की बात आगे देखी जाएगी । कल को= भविष्य में ।
कल ^५ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ कला = अंग, भाग]
१. ओर । बल । पहलू । जैसे, —(क) देखें ऊँट किस कल बैठता है (ख) कभी वे इस कल बैठत हैं, कभी उस कल ।
२. अंग । अवयव । पुरजा ।
कल ^६ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ कला = विद्या]
१. युक्ति । ढंग । उ॰—मुझ में तीनों कल बल छल । किसी की कुछ नहिं सकती चल ।— हरिश्चंद्र (शब्द॰) ।
२. कई पेंचों और पुरजों के जोड़ से बनी हुई वस्तु जिससे कोई काम लिया जाय । यंत्र । जैसे— छापे की कल । कपड़ा बुनने की कल । सोने की कल । पानी की कल । यौ॰—कलदार= यंत्र से बना हुआ सिक्का । रुपया । पानी की कल= वह नल जिसकी मूंठ ऐंठने या दबाने से पानी आता है । क्रि॰ प्र॰—खोलना ।—चलना ।—चलाना ।—लगाना ।
३. पेंच पुरजा । क्रि॰ प्र॰—उमेठना ।—ऐंठना ।—घुमाना ।—फेरना ।—मोड़ना । मुहा॰—कल ऐंठना= किसी के चित्त को किसी ओर फेरना ।
कल ^७ पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ कलइ] युद्ध । संग्राम । उ॰—भुज दुहुवाँ बल, बीस भुज कल दस माथा काट ।—बाकी॰ ग्रं॰, भा १, पृ॰ ६० ।
कल ^८ वि॰ [हिं॰ काला शब्द का संक्षिप्त या समासगत रूप] काला । जैसे, —कलमुहाँ । कलसिरा । कलजिब्भा । कलपोटिया । कलदुमा ।