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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

कर्मयोग संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. चित्त शुद्ध करनेवाला शास्त्रविहित कर्म । उ॰— कर्म योग पुनि ज्ञान उपासन सबही भ्रम भरमायो । श्री वल्लभ गुरू तत्व सुनायो लीला भेद बतायो ।— सूर (शब्द॰) ।

२. उस शुभ और कर्तव्य कर्म का साधन जो सिद्धि और असिद्धि में समान भाव रखकर निर्लिप्त रूप से किया जाय । इसका उपदेश श्रीकृष्ण ने गीता में विस्तार के साथ किया है ।