प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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करक ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. कमंडलु । करवा । उ॰—कहु मृगचर्म कतहुँ कोपीना । कहुँ कंथा कहु करक नवीना ।—शं॰ दिं॰ (शब्द॰) ।

२. दाड़िम । अनार । उ॰—सहज रुप की राशि नागरी भुषण अधिक बिराजै ।...नासा नथ मुक्ता बिंबाधर प्रतिबिंबित असमुच । बीध्यो कनकपाश शुक सुंदर करक बीज गहि चुँच ।—सुर (शब्द॰) ।

३. कचनार ।

४. पलास ।

५. बकुल । मौलसिरी ।

६. करील का पेड़ ।

७. नारियल की खोपड़ी ।

८. ठठरी ।

९. हस्त । हाथ (को॰) ।

१०. कर । महसुल (को॰) ।

११. उपल । करका । ओला (को॰) ।

१२. एक पक्षी का नाम (को॰) ।

१३. उच्चघोष । ऊँची ध्वनि (को॰) ।

करक ^२ संज्ञा पुं॰ [अ॰ कलक]

१. रुक रुककर होनेवाली पीड़ा । पीड़ा । व्याकुल । बेचैनी ।

२. कसक । चिनक । उ॰— बाबल बैद बुलाइया रे, पकड़ दिखाई म्हाँरी बाँह । मुरख बैद मरन नहिं जाने, करक कलेजे माँह ।—संतवाणी॰, भा॰ २, पृ॰ ७१ ।

करक ^३ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ कड़क]

१. रुक रुककर और जलन के साथ पेशाब होने का रोग । क्रि॰ प्र॰—थामना ।—पकड़ना ।

२. वह चिह्न जो शरीर पर किसी वस्तु की दाब, रगड़ या आघात से पड़ जाता है । साँट । उ॰—दिग्गज कमठ कोल सहसानन धरत धरनि धर धीर । बारहिं बार अमरखत करखत करकैं परी सरीर ।—तुलसी (शब्द॰) ।

करक ^४ † संज्ञा पुं॰ [सं॰ कर्क] दे॰ 'कर्क' । उ॰—दोय संक्रात का भेद बताई । एक मकर दुजा करक कहाई ।—कबीर सा॰, पृ॰ ५५९ ।