प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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कचनार संज्ञा पुं॰ [सं॰ काञ्चनार] पतली पतली ड़ालियों का एक छोटा पेड़ । विशेष— यह कई तरह का होता है और भारतवर्ष में प्रायः हर जगह मिलता है । यह लता के रूप में होता हैं । इसकी पात्तियाँ गोल और सिरे पर दो भागों में कटी होती हैं । यह पेड़ अपनी कली के लिये प्रसिद्ध है । कली की तरकारी होती है ऐर अचार पड़ता है । कचनार वसंत ऋतु में फूलता है । फूलों में भीनी भीनी सुगंध रहती है । फलों के झड़ जाने पर इसमें लंबी लंबी चिपटी फलियाँ लगती हैं । कचनार कई प्रकार के फुलवाले होते हैं । किसी में लाल में फूल लगते हैं किसी में सफेद और किसी में पीले । लाल फूलवाले को ही संस्कृति में कांचनार कहा जाता हैं । कांचनार शीतल और कसैला समझा जाता हैं और दवा में बहुत काम आता है । कचनार की जाति के बहुत पेड़ होते हैं । एक प्रकार का कचनार कुराल या कंदला कहलाता है जिसकी गोंद 'सेम की गोंद' या 'सेमला गोंद' के नाम से बिकती है । यह कतीरे के तरह की होती है और पानी में घुलती नहीं । यह देहरादून की ओर से आती है ओर इंद्रिय जुलाब तथा रज खोलने की दवा मानी जाती है । एक प्रकार का कचनार बनराज कहलाता है जिसकी छाल के रेशों की रस्सी बनती है ।