प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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ओघ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. समूह । ढेर । उ॰— सिल निंदक अघ ओघ नसाए । लोक बिलोक बनाइ बसाए । मानस, १ ।१६ । यौ॰ अघौघ=पापों का समूह ।

२. किसी वस्तु का घनत्व ।

३. बहाव । धारा । उ॰— (क) सुनु मुनी उहाँ सुबाहु लखि निज दल खंडित गात । महा विकल पुनि रुधिर के ओघ विपुल तन जात ।—रामाश्वमेध (शब्द॰) । (ख) साहस उमड़ता था वेगपूर्ण ओघ सा ।—लहर, पृ॰ ६९ ।

४. सांख्य के अनुसार एक प्रकार की तुष्टि । कालतुष्टि । विशेष—'काल पा के सब काम आप ही हो जाएगा', इस प्रकार संतोष कर लेने को कालतुष्टि या 'ओघ' कहते हैं ।

५. सातत्य । नैरंतर्य । अविच्छिन्नता (को॰) ।

६. परंपरा या परपंरागत निर्देश (को॰) ।

७. समग्र । संपूर्ण (को॰) ।

८. नृत्य का एक भेद (को॰) ।

९. द्रुत लय (को॰) ।

१०. गीत के साथ बजाई जानेवाली तीन वाद्य विधियों में से एक । शेष दो के नाम तत्व और अनुगत हैं (को॰) ।