ओखा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनओखा ^१ पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ √ओख्=वारण करना, बचाना] भिस । ब्याज । बहाना । हीला । उ॰—(क) देखिबे को नँदनंदन को, ननदी नँदगाँव चलौं केहि ओखे ।—बेनी प्रविन (शब्द॰) । (ख) नेकौ अनखति न अनख भरि आँखिन, अनोखी अनखीली रोख ओखे ते करति है ।—देव (शब्द॰) ।
ओखा ^२ वि॰ [सं॰ √ओख्='सूखना'; पं॰ औखा= टेढा़, कठिन] वि॰ स्त्री॰ओखी]
१. रूखा सूखा ।
२. कठिन । विकट । टेढा़ । उ॰—सुनु, नीको न नेह लगवानो है, फिर जो पै लगै तो निबाहनो है । अति ओखी है प्रीति की रीति, अरी, नहिं जोस को रोस सुहावनो है ।—सुंदरी सर्वस्व (शब्द) ।
३. खोटा । जिसमें मिलावट हो । चोखा का उलटा ।
४. झीना । जिसकी बिनावट दूर दूर हो । बिरल ।
५. ओछा । हलका । साधारण ।