ओःओः अव्य॰ [हिं॰] दे॰ 'ओह' । उ॰—वह इतना डर जाता है कि उसके मुँह से ओःओः छोडकर सीधी बात न निकलती ।—रस॰ क॰ (भू॰), पृ॰ ३ ।