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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

एड़ी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ एडूक=हड्डी या हड्डी की तरह कड़ा, हिं॰ एड़] टखनी के पीछे पैर की गद्दी का निकला हुआ भाग । एड़ । उ॰—बार बार एड़ी अलगाय कै उचकि लफी, गई लचि बहुरि पयोधर विदेह सो ।—कविता कौ॰, भा॰ २, पृ॰ ६९ । महा॰—एड़ी घिसना या रगड़ना=(१) एड़ी को मल मलकर धोना । उ॰—मुँह धोवति एड़ी घसति, हसति अनँगवति तीर । बिहारी र॰, दो॰, ६९७ । (२) रीघना । बहुत दिनों से क्लेश या दुःख में पड़ा रहना । कष्ट उठाना । जैसे—'वे महीनों से चारपाई पर पड़ेएड़ियाँ घिस रहे हैं । (३) खूब दौड़धूप करना । अंगतोड़ परिश्रम करना । अत्यंत यत्न करना । जैसे—'व्यर्थ एड़ियाँ घिस रहे हो कुछ होने जाने का नहीं । एड़ी चोटी पर से वारना=(१) सिर और पाँव पर से न्योछावर करना । तुच्छ समझना । नाचीज समझना । कुछ कदर न न करना । (स्त्रियाँ॰) । जैसे—ऐसों को तो मैं एडी चोटी पर वार दूँ । उ॰—एड़ी चोटी पै मुए देव को कुरबान करूँ ।— इंदरसना (शब्द॰) । एड़ीदेख=चश्मबददूर । तेरी आँख में राई लोन । जब कोई ऐसी बात कहता है जिससे बच्चे का नजर या भूत प्रेत लगने का डर होता है तब स्त्रियाँ यह वाक्य बोलती हैं) । एड़ी से चोटी तक=सिर से पैर तक । एड़ी चोटी का पसीना एक होना या करना=अति परिश्रम करना । श्रम पड़ना ।