प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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एकमुखविक्रय संज्ञा पुं॰ [सं॰] सबके हाथ एक दाम पर बेचना । बँधी कीमत पर बेचना । विशेष—कौटिल्य के अनुसार चंद्रगुप्त के समय में पण्य बाहुल्य अर्थात् माल की पूरी आमदनी होने पर व्यापारियों को माल बँधी कीमत पर बेचना पड़ता था । वे भाव घटा बढ़ा नहीं सकते थे ।