संज्ञा

  1. गणित में घटाने के लिए उपयोग किया जाने वाला चिह्न
  2. उधार


प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

ऋण ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. किसी से कुछ समय के लिये कुछ द्रव्य लेना । ब्याज पर मिला हुआ धन । कर्ज । उधार । क्रि॰ प्र॰—करना ।—काढ़ना ।—देना ।—लेना । मुहा॰—ऋण उतरना=कर्ज अदा होना । ऋण चढ़ना=कर्ज होना । जैसे,—उनके ऊपर बहुत ऋण चढ़ गया है । ऋण चढ़ाना=जिम्मे रुपया निकालना । ऋण पटाना=धीरे धीरे कर्ज का रुपया अदा होना । ऋण पटाना=धीरे धीरे उधार लिया हुआ रुपया चुकता करना । जैसे,—हम चार महीनों में यह ऋण पटा देंगे । ऋण मढ़ना=ऋण चढ़ाना । देनदार बनाना । जैसे,—'वह हमारे ऊपर ऋण मढ़कर गया है ।'

२. किसी उपकार के बदले में किसी के प्रति आवश्यक या कर्यव्य रूप से किया जानेवाला कार्य । वह कार्य जिसका दायित्व किसी पर हो ।

३. किसी का किया हुआ उपकार या एहसान ।

४. घटाने या बाकी निकालने का चिह्नन (—) (गणित) ।

५. किला । दुर्ग (को॰) ।

६. भूमि । जमीन (को॰) ।

७. पानी । जल (को॰) । यौ॰—ऋणकर्ता, ऋणग्राही=कर्ज लेनेवाला । ऋणद, ऋणदाता, ऋणदायी=कर्जा चुकता करनेवाला । ऋणमुक्त । ऋण- मुक्ति=ऋणशुद्धि ।

ऋण ^२ वि॰ खाते, गणित आदि में जो ऋण के पक्ष का हो ।