ऊठना पु क्रि॰ अ॰ [हिं॰] दे॰ 'उठना' । —तब श्री गुसाँई जो गोविंददास कोटोरि कै कहे, जो गोविंददास, ऊठो तुमको नवनीतप्रिय जी के सदैव ऐसे ही दरसन होंगे ।—दो सौ बावन॰, भा॰ १, पृ॰ २८९ ।