उह ^२पु सर्व॰ [हिं॰] दे॰ 'उस' । उ॰— सो वह लरिकिनी कौ दुःख देखि कै श्रीनाथ जी ने श्रीकुसाँई जी सो कह्यो, जो —वह बनिया बैष्णव की बेटी उह गाँव में है । सो बाकौ दुःख मो तें सह्यो जात नाहीं । —दो सौ बावन॰, भा॰२, पृ॰ ३८ ।