प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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उल्लेख संज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि॰ उल्लेखक, उल्लेखनीय, उल्लेखित, उल्लेख्य]

१. लिखना । लेख ।

२. वर्णन । चर्चा । जिक्र । जैसे,—इस बात का उल्लेख ऊपर हो चुका है । क्रि॰ प्र॰—करना । होना ।

३. एक काव्यालंकार जिसमें एक ही वस्तु का अनेक रूपों में दिखाई पड़ना वर्णन किया जाय । विशेष—इसके दो भेद हैं, प्रथम और द्वितीय । प्रथम— जहाँ अनेक जन एक ही वस्तु को अनेक रूपों में देखें वहाँ प्रथम भेद हैं, जैसे,— वारन तारन वृद्ध तिय, श्रीपति जुवतिन झूमि । दर्शनीय बाला जनन लखे कृष्ण रंगभूमि (शब्द॰) । अथवा जानत सौति अनीति है, जानत सखी सुनिती । गुरुजन जानत लाल है, प्रीतम जानत प्रीति (शब्द॰) । पहले उदाहरण में एक ही कृष्ण को वृद्धा स्त्रियों ने हाथी का उद्धार करनेवाला और युवतियों ने लक्ष्मी के साथ रमण करनेवाला देखा और दूसरे उदाहरण में एक ही नायिका को सौत ने अनीति रूप में और गुरुजनों ने लज्जा रूप में देखा । पहला उदाहरण शुद्ध उल्लेख का है क्योंकि उसमें और अलंकार का आभास नहीं है, पर दूसरा उदाहरण संकीर्ण उल्लेख का है क्योंकि एक ही नायिका में सुनीति और लज्जा आदि कई अन्य वस्तुओं का आरोप होने के कारण उसमें रूपक अलंकार भी मिल जाता है । द्वितीय— जहाँ एक ही वस्तु को एक ही व्यक्ति कई रूपों में देखें वहाँ द्वितीय भेद होता है । जैसे,— कंजन अमलता, में, खंजन चपलता में, छलता में मीन, कलता में बडे़ ऐन के ।— यामें झूठी है न प्यारे ही में आह लागिबे में प्यारी जू के नैन ऐन तीखे बान मैन के (शब्द॰) ।