प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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उपेंद्रवज्रा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ उपेन्द्रवज्रा] ग्यारह वर्णो की एक वृत्ति जिसमें क्रमशः जगण, तगण,जगण और अंत में दो गुरु होते हैं । जैसे—अकंप धूम्राक्षहि जानि जूझ्यो । महोदरै रावण मंत्र बूझ्यो । सदा हमारे तुम मंत्रवादी । रहे कहा ह्वै अति ही विषादी ।—केशव (शब्द॰) ।