उपसर्ग
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनउपसर्ग संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. वह शब्द या अव्यय जो केवल किसी शब्द के पहले लगता है और उसमें किसी अर्थ की विशेषता ला देता है । जैसे अनु, अव, उद् इत्यादि ।
२. अशकुन ।
३. उपद्रव । दैवी उत्पात ।
४. योगियों के योग में होनेवाला विघ्न, जो पाँच प्रकार का कहा गया है—प्रतिभ श्रावण, देव, भ्रम ओर आवर्तक । (मार्कंड़ेय पुराण॰) ।
५. ग्रहण (को॰) ।
६. मृत्यु का लश्रण (को॰) ।
७. भूत प्रेत आदि दुष्ट आत्माओं का आधिकार (को॰)
८. दुःख । व्यया (को॰) ।