प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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उड़ान ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ उड्डयन]

१. अड़ने की क्रिया । उ॰—पंखि न कोई होय सुजानू । जानै भुगति कि जान उड़ानू ।—जायसी ग्रं॰, पृ॰ २१ । यौ॰—उड़ानघाईं, उड़नफल'=दे॰ 'उड़नघाईं', उड़नफल । वै उड़ान फर तनियै खाए । जब भा पंख पाँख तन आए ।—जायसी ग्रं॰ पृ॰ २६ । उड़ान पर्दा ।

२. छलाँग । कुदान । जैसे—(क) हिरन ने कुत्तों को देखते ही उड़ान भारी । (ख) चार उड़ान में घोड़ा २० मील गया । क्रि॰ प्र॰—भरना । मारना ।

३. उतनी दूरी जितनी एक दौड़ में तै कर सकें । जैसे उ॰— काशी से सारनाथ दो उड़ान है ।

४. कल्पना । उक्ति । विचार । मुहा॰—उड़ान भरना=कल्पना करना । विचार करना । विचारना । उ॰—किंतु वहाँ से यों ही उड़ान भरना नहीं होता—चिंता मणि, भा॰

२. पृ॰ २ । उड़ान मारना=बहाना करना । बातों में टालना । जैसे—तुम इतनी उड़ान क्यों मारते हो, साफ साफ कह क्यों नहीं डालते ? उड़ उड़ू होना=(१) दुर दुर होना । (२) चारों ओर से बुरा होना । कलंकित होना । बदनाम होना । नक्कू बनना ।

उड़ान ^२पु संज्ञा पुं॰ [देश॰]

१. कलाई । गट्टा । उ॰—गोरे उड़ान रही खुभिकै चुभिकै चित माँह बड़ी चटकीली ।—गुमान (शब्द॰) ।

२. मालखंभ की एक कसरत जिसमें एक हाथ में बेत दबाकर उसे हाथ से लपेटकर पकड़ते हैं और दूसरे हाथ से ऊपर का भाग पकड़कर पावँ पृत्वी से उठा लेते हैं और एक बार आजमाकर बेत पर उसी प्रकार चढ़ जाते हैं जैसे गड़े हुए मालखंम पर ।