प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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ईमान संज्ञा पुं॰ [ अ॰]

१. विश्वास । आस्था । आस्तिक्व बुद्धि । उ॰— दादू दिल अरवाह का को अपना ईमान । सोई साबित राखिए जहँ देखइ रहिमान ।—दादू (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—लाना—=विश्वास या आस्था रखना । जैसे—ईसाई कहते हैं कि ईसा पर ईमान लाओ ।

२. चित्त की सदवृत्ति । अच्छी नीयत । धर्म सत्य । जैसे,— (क) ईमान से कहना, झूठ मत बोलना । (ख) ईमान ही सब कुछ है, उसे चार पैसे के लिये मत छोडो़ । (ग) यह तो ईमान की बात नहीं है । क्रि॰ प्र॰—खोना ।—छोडना । —डिगना । —डिगाना ।—डोलना । —डोलाना । मुहा॰—ईमान की कहना=सच कहना । न्याय की बात कहना । ईमान जाना=नीयत बिगड़ना । उ॰—उधर है जेल की जहमत इधर हा कौम की लानत । उधर आराम जाता है ईधर ईमान जाता है ।—कविता कौ॰, भा॰ ४, पृ॰ ६६६ । ईमान ठिकाने न होना=धर्मभाव दृढ न रहना । ईमान देना=सत्य छोड़ना । धर्म विरुद्ध कार्य करना । ईमान में फर्क आना=धर्म भाव में ह्रास होना । नीयत बिगड़ना । ईमान लाना=दृढ विश्वास करना । ईमान से कहना=सच सच कहना ।