प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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इसकी पत्तियाँ पान के आकार की गोल गोल होती हैं । इसकी गाँठों में से जटाएँ निकलती हैं जो बढ़कर जड पकड़ लेती हैं । गुरुच दो प्रकार की देखने में आती है । एक में फल नहीं लगते । दूसरी में गुच्छों में मकोय की तरह के फूल, फल लगते हैं और उसके पत्ते कुछ छोटे होते हैं । गुरुच के डंठल का आयुर्वेदिक औषधियों में बहुत प्रयोग होता है । वैद्यक में गुरुच तिक्त, उष्ण, मलरोधक, अग्निदीपक तथा ज्वर, दाह, वमन कोढ़ आदि को दूर करनेवाली मानी जाती है । नीम पर की गुरुच दवा के लिये अच्छी मानी जाती है । इसे कूटकर इसका सत भी बनाते हैं । ज्वर में इसका काढा़ बहुत दिया जाता है । पर्या॰—गुडूची । अमृतवल्ली । कुंडली । मधुपर्णी । सोमवल्ली । विशल्या । तंत्री । निर्जरा । वत्सादनी । छिन्नरुहा । अमृता । जीवतिका । उद्धारा । वरा । ज्वरारि । श्यामा । चक्रांगी । मधुपर्णिका । रसायनी । छिन्ना । भिषकप्रिया । चंद्रहासा । नागकुमारिका । छद्या ।

इसकी कलियाँ उँगली के समान मोटी, चिपटी तथा चार पाँच अंगुल लंबी होती हैं और इसमें ७-८ दाने होते हैं । इसके फूल गुच्छों में लगते हैं जो बारहों महीने रहते हैं, परंतु और महीनों की अपेक्षा आषाढ़ में अधिक फूल लगते हैं । फूलों में गंध नहीं होती । इसकी लकड़ी मजबूत होती है । इसके वृक्ष बीज और कलम दोनों से ही लगते हैं । कई प्रकार के रोगों में इसका क्वाथ भी दिया जाता है । वैद्यक के अनुसार यह गरम, कफ, वात, शूल, आमवात और नेत्ररोग को दूर करनेवाली है ।