इस
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनइस सर्व [सं॰ एष] सर्वनाम 'यह' शब्द का विभक्ति के पहले आदिष्ट रूप जो सममय, स्थान आदि के अनुसार समीपस्य; प्रसंग के अनुसार प्रस्तुत और उल्लेख के अनुसार कुछ ही पहले प्रयुक्त होता हैं । विशेष— जब 'यह' शब्द में विभक्ति लगानी होती है, तब उसे 'इस' कर देते हैं । जैसे, — इसने, इसको, इससे, इसमें ।
इस देश में ये लोग प्रायः मुसलमान होते हैं । उ॰—आसा की डोरी गरे बाँधि देत दुख छोभ । चित पितु को बंदर कियो अहो कलँदर लोभ ।—दीन॰ ग्रं॰, पृ॰ २५२ ।
३. दे॰ 'कलंदरा' ।
इस दर्शन के अनुसार यह निखिल जगत् अनंत समुद्रशायी भगवान् विष्णु से उत्पन्न हुआ है । चित् और अचित् संपूर्ण पदार्थ उनके शरीररूप हैं । पुरुषोत्तम, वासुदेवादि उनकी संज्ञाएँ है । उपासकों को यथोचित फल देने के लिये लीलावश वे पाँच प्रकार की मूर्तियाँ धारण करते हैं । प्रथम अर्चा अर्थात् प्रतिमादि, द्वितीय विभव अर्थात् रामादि अवतार, तृतीय बासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध ये चार संज्ञाक्रांत व्यूह, चतुर्थ सूक्ष्म और संपूर्ण वासुदेव नामक परब्रह्म पंचम अंतर्यामी सकल जीवों के नियंता उपासक क्रम से पूर्व मूर्ति की उपासना द्वारा पापक्षय करके परमूर्ति की उपासना का अधिकारी होता है । अभिगमन, उपादान, इज्या, स्वाध्याय और योग नाम से भगवान् की उपासना के भी पाँच प्रकार हैं । देवमंदिर का मार्जन, अनुलेपन आदि अभिगमन है; गंध पुष्पादि पूजा के उपकरणों का आयोजन उपादान; पूजा इज्या; अर्थानुसंधान के सहित मंत्रजप, स्तोत्रपाठ, नामकीर्तन ओर तत्व प्रतिपादक शास्त्रों का अभ्यास स्वाध्याय, और देवता का अनुसंधान योग है । इन उपासनाओं के द्वारा ज्ञानलाभ होने पर भगवान् उपासक को नित्यपद प्रदान करते हैं । इस पद को प्राप्त होने पर भग- वान् का यथार्थ रूप में ज्ञान होता है और फिर जन्म नहीं लेना पड़ता । पूर्णप्रज्ञ के मत से भगवान् विष्णु की सेवा तीन प्रकार की है अंकन, नामकरण और भजन । गरम लोहे से दागकर शरीर पर शंख, चक्र आदि के चिह्न उत्पन्न करना अंकन है; पुत्र पौत्रादि के केशव नारायण आदि नाम रखना नामकरण । भजन के कायिक, वाचिक और मानसिक भेद से तीन प्रकार हैं । फिर इनके भी कई गई भेद हैं,—कायिक के दान, परित्राण और परिरक्षण, वाचिक के सत्य, हित प्रिय और स्वाध्याय, और मानसिक के दया, स्पृहा और श्रद्धा ।
इस प्रकार से । इस भाँति । ऐसे । जैसे,—वह यों नहीं मानेगा ।