प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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आरा ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ अल्पा॰ आरी]

१. एक लोहे की दाँतीदार पटरी जिससे रेत कर लकड़ी चीरी जाती है । इसके दोनों ओर लकड़ी के दस्ते लगे रहते हैं । उ॰—यह मन वाको दीजिए जो साँचा सेवक होय । सिर ऊपर आरा सहै, तबहुँ न दूजा सोय ।-कबीर (शब्द॰) ।

२. चमड़ा सीने का टेकुआ या सूजा । सुतारी । यौ॰—आराकश ।

आरा ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ आर] लकड़ी की चौड़ी पटरी जो पहिए की गड़ारी और पुट्ठी के बीच जड़ी रहती है । एक पहिए में ऐसी दो पटरियाँ होती हैं, बाकी और जो पतली पतली चार पटरियाँ जड़ी जाती हैं, उन्हें गज कहते हैं ।

आरा ^३ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ आड़ा] लकी की या पत्थर की पटरी जिसे दीवार पर रखकर उसके ऊपर घोड़िया या टोटा बैठातै है । यह इसलिये रखा जाता है कि घोड़िया आदि एक सीध में रहें ऊपर नीचे हों । दीवारदासा । दासा ।

आरा ^४ † संज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे॰ 'आला' ।