प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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आरसी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ आदर्श]

१. शीशा । आईना । दर्पण । उ॰—(क) कहा कुसुम, कह कौमुदी, कितक आरसी जोति । जाकी उजराई लखे, आँखि ऊजरी होति ।-बिहारी र॰, दो॰ ५१२ ।

२. एक गहना जिसे स्त्रियाँ दाहिने हाथ के अँगूठे में पहनती हैं । यह एक प्रकार का छल्ला है जिसके ऊपर एक कटोरी होती है जिसमें शीशा जड़ा होता है । उ॰—कर मुँदरी की आरसी, प्रतिबिंबित प्यौ पाइ । पीठि दियौं निधरक लखै, इकटक डीठि लगाइ ।-बिहारी र॰, दो॰ ६११ ।