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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

आपा ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰आप]

१. अपनी सत्ता । अपना अस्तित्व । जैसे,—अपने आपे को समझो, तब ब्रह्माज्ञान होगा ।

२. अपनी असलियत । जैसे,—अपने आपको देखा तब बढ़ बढ़कर बातें करना ।

३. अहंकार । घमंड़ । गर्व । उ॰—(क) जग में बैरी कोइ नहीं जामें शीतल होय । या आपा को डारि दे दया करै सब वोय । —कबीर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—खोना ।—छोड़ना । —जाना ।—मिटना ।

४. होश हवास । सुध बुध ।जैसे,—यह दशा देख लोग अपना आपा भूल गए । मुहा॰—आपा खोना=(१) अहंकार त्यागना । नम्र होना । निरभिमान होना । उ॰—ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय । औरन को शितल करै आपुहिं शीतल होय ।—कबीर (शब्द॰) ।(२) अपने को बरबाद करना । अपने को मिटाना । अपनी सत्ता तो भूलना । खाक में मिलाना । उ॰—रंगहि पान मिले जस होई । आपहि खोय रहा होय सोई ।—जायसी (शब्द॰) । (३) हस्ती बिगड़ना । प्राण तजना । मरना । जैसे,— उसने जरा सी बात पर अपना आपा खो दिया । आपा ड़लना =अहंकार का त्याग करना । घमंड़ छोड़ना । उ॰—तन मन ताको दीजिए जाके विषया नाहिं । आपा सबही ड़ारि कै राखै साहिब माहिं ।—कबीर (शब्द॰) । आपा तजना= (१) अपनी सत्ता को भूलना । अपने को मिटाना । आत्मभाव का त्याग । अपने पराए का भेद छोड़ना । उ॰—आपा तजो औ हरि भजो नख शिख तजो विकार । सब जिउते निर्वेर रहु साधु मता है सार । -कबीर (शब्द॰) । (२) अपने आप को मिटाना । अपने को खराब करना । जैसे,—अपना आपा तजकर हम उनके साथ साथ घूम रहे हैं । (३) अहंकार छोड़ना । निरभिमान होना । उ॰—आपा तजै सो हरि का होय (शब्द॰) । (४) चोला छोड़ना । प्राण छोड़ना । मरना आत्मघात करना । जैसे,—यह लड़का क्यों रोते आपा तज रहा है ।आपा दिखलाना=दर्शन देना । उ॰—कै विरहिनि को मीच दे कै आपा दिखालाय । आठ पहर का दाझना मोपै सहा न जाय ।— कबीर (शब्द॰) । आपा बिसरना=(१) आत्माभाव का छूटना । अपने पराए के ज्ञान का नाश होना । उ॰—ब्रह्ममज्ञान हिये धरु, बोलते ती खोज करु, माय़ा अज्ञान हरु आपा बिसराउरे ।— कबीर (शब्द॰) । (२) सुध बुध भूलना । होश हवास खोना । आपा बिसराना= (१) आत्मा भाव को भूलना । अपने पराए का भेद भूलना । (२) सुध बुध भूलना । होश हवास खोना । आपे में आना= होश हवास में होना । सुध बुध में होना । चेत में होना । जैसे,—जरा आपे में आकर बातचीत करो । आपे में न रहना=(१) आपे से बाहर होना । बेकाबू होना । जैसे,—मारे क्रोध के वह इस समय आपे में नहीं है । (२) घबराना । बदहवास होना । जैसे,—विपत्ति में बुद्धिमान भी आपे में नहीं रह जाते । आपा मिटना= अहंकार का नाश होना । घमंड़ का जाता रहना । उ॰—या मन फटक पछोरि ले, सब आपा मिट जाय । पिंगला होय पिय पिय करै ताको काल न खाय । —कबीर (शब्द॰) । आपा मेटना=घमंड़ छोड़ना । अहंकार त्यागना । उ॰—गुरु गोबिद दोउ एक हैं दूजा सब आकार । आपा मेठै हरि भजै तब पावै करतार ।-कबीर (शब्द॰) । आपा सँभालना =(१) चैतन्य होना । जागना । होशियार होना । चेतना । जैसे,—अब आपा सँभालो, घर का सब बोझ तुम्हारे ऊपर है । (२) शरीर सँभालना । देह की सुध रखना । जैसे,—यह पहले अपना आपा तो सँभाले; फिर औरों की सहायता करेगा । (३) अपनी दशा सुधारना । (४) बालिग होना । होश सँभा- लना । जवान होना । जैसे,—अपना आप सँभालते ही वह इन सब बेईमान नौकरों की निकाल बाहर करेगा । आपे से निकलना= आपे से बाहर होना । क्रोध और हर्ष के आवेश में सुध बुध खोना । जैसे, —उनकी कौन चलावै, वे तो जरा जरा सी बात पर आपे से निकले पड़ते है । (स्त्रि॰) आपे से बाहर होना=(१) वश में न रहना । बेकाबू होना । क्रोध और हर्ष के आवेश में सुध बुध खोना । आवेश के कारण अधीर होना । क्षुब्ध होना । उ॰—(क) एक ऐसी वैसी छोकरी के लिये इतना आपे से बाहर होना ।—अयोध्य॰ (शब्द॰) (ख) इतने ही पर वह आपे से बाहर हो गया और नौकर को मारने दौड़ । (२) घबराना । उद्बिग्न होना । जैसे,—धीरज धरो, आपे से बाहर होने से काम नहीं चलता ।

आपा ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ आप] बडी बहिन (मुसलमानी) ।

आपा ^३ संज्ञा पुं॰ बडा भाई (महाराष्ट्र ) ।