प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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आखना ^१ पु क्रि॰ सं॰ [सं॰ आख्यान, प्रा॰ आक्खान, पुं॰ √आखना] उ॰—कहना । बोलना । उ॰—(क) बार बार का आखिये, मेरे मन की सोय । कलि तो ऊखल होयगी, साई और न होय ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) सत्यसंध साँचे सदा, जे आखर आखे । प्रनतपाल पाए सही, जो फल अभिलाखे ।— तुलसी (शब्द॰) ।

आखना ^२ क्रि॰ स॰ [सं॰ आकांक्षा] चाहना । इच्छा करना । उ॰— तोहि सेवा बिछुरन नहिं आखौं । पींजर हिये घालि कै राखौं ।—जायसी ग्रं॰, पृ॰ २२ ।

आखना ^३ क्रि॰ स॰ [सं॰ अक्षि, प्रा॰ आक्खि=आँख] देखना । ताकना । उ॰—अलक, भुअंगिन अधरहि आखा । गहै जो नागिन सो रस चाखा ।—जायसी ।—(शब्द॰) । (ख) आत्म और विषै को सुख वाच्य पद आनंद को । विषै सुख त्यागि आत्म सुख लक्ष्य आखिये ।—निश्चल (शब्द॰) ।

आखना ^४ क्रि॰ स॰ [हिं॰ आखा] मोटे आटे को आखे में डालकर चालना । छानना ।