हिन्दी सम्पादन

प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

अश्वमेध संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक बड़ा यज्ञ । विशेष—इसमें घोड़े के मस्तक पर जयपत्र बाँधकर उसे भूमं- डल में घूमने के लिये छोड़ देते थे । उसकी रक्षा के निमित्त किसी वीर पुरुष को नियुक्त कर देते थे जो सेना लेकर उसके पीछे पीछे चलता था । जिस किसी राजा को अश्वमेध करनेवाले का अधिपत्य स्वीकृत नहीं होता था, वह उस घोड़े को बाँध लेता और सेना से युद्ध करता था । अश्व बाँधनेवाले को पराजित कर तथा घोड़े को छुड़ाकर सेना आगे बढ़ती थी । इस प्रकार वह घोड़ा संपूर्ण भूमंडल में घूमकर लौटता था, तब उसको मारकर उसकी चर्बी से हवन किया जाता था । यह यज्ञ केवल बड़े प्रतापी राजा करते थे । यह यज्ञ साल भर में होता था ।

२. एक प्रकार की तान जिसमें षडज स्वर को छो़ड़कर शेष छह स्वर लगते हैं ।