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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अवतार संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. उतरना । नीचे आना ।

२. जन्म । शरीरग्रहण । उ॰—(क) नव अवतार दीन्ह विधि आजू । रही छार भइ मानुष साजू ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) प्रथम दच्छ गृह तव अबतारा । सती नाम तब रहा तुम्हारा ।— तुलसी (शब्द॰) ।

३. पुराणों के अनुसार किसी देवता का मनुष्यादि संसारी प्रणियों का शरीर धारण करना ।

४. विष्णु का संसार में शरीर धारण करना । विशेष—पुराणानुसार विष्णु भगवान् के

२४. अवतार है ।—ब्रह्मा, वाराह, नारद, नरनारायण, कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञ, ऋषभ, पृथु, मत्स्य, कूर्म, धन्वंतारि, मोहिनी, नृसिह, वामन, परशुराम, वेदव्यास, राम, बलराम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि, हंस और हयग्रीव, इनमें से १० अर्थात् मत्स्य, कच्छप, वराह, नुसिह, वामन, परशु- राम, राम, कृष्णा, बृद्ध और कल्किप्रधान माने जाते है ।

५. पु सृष्टि । शरीररचना । उ॰—कीन्हेसि धरनी सरग पतारू । कीन्हेसि बरन बरन अवतारू । —जायसी (शब्द॰) ।

६. अवतरण भूमि । उतरने का स्थान [को॰] ।

७. तालाब [को॰] ।

८. अनुवाद [को॰] ।

९. बिषयप्रवेश । आमुख । भूमिका [को॰] ।

१०. तीर्थ [को॰] ।

११. विशिष्ट व्याक्ति [को॰] ।

१२. उत्पत्ति । विकास [को॰] । मुहा.—अवतार लेना=शरीर ग्रहण करना । जन्म लेना । उ॰— अंसन्ह सहित मनुज अवतारा । लेइहउँ दिनकर बंस—उदारा ।— तुलसी (शब्द॰) । अवतार धरना= जन्म ग्रहण करना । उ॰— भुव की रक्षा करन जु कारण धरि वराह अवतार । पीछे कपिल रूप हरि धारयो कीन्हो सांख विचार ।—सूर (शब्द॰) पु अवतार करना पु= शरीर धारण करना । उ॰—अरुन असित सित वपु उनहार । करत जगत में तुम अवतार ।.....सूर (शब्द॰) । यौ॰—अवतारकथा । अवतारमंत्र = भगवान् से अवतार ग्रहण करने के लिये की गई प्रार्थना । अवतारवाद ।