प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अलसी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अतसी] एक पौधा और उसका फल या बीज । तीसी । विशेष—यह पौधा प्रायः दो ढाई फुट ऊँचा होता है । इसमें डालियाँ बहुत कम होती हैं, केवल दो या तीन लंबी, कोमल और सीधी टहनियाँ छोटी छोटी पत्तियों से गुछी हुई निकलती हैं । इसमें नीले और बहुत सुंदर फूल निकलते हैं जिनके झड़ने पर छोटी घुंडियाँ बँधती हैं । इन्हीं घुंडियों में बीज रहते हैं जिनसे तेल निकलता है । यह तेल प्रायः जलाने और रंगसाजी तथा लीथो के छावे की स्याही बनाने के काम में आता है । बहुत से स्थानों पर साग, सब्जी आदि में भी इसका प्रयोग होता है । छापने की स्याही भी इसकी मिलावट से बनती है । इसको पकाकर गाढ़ा करके एक प्रकार का वारनिश भी बनता है । तेल निकालने के बाद अलसी की जो सीठी बचती है उसे खरी, खली कहते हैं । यह खली गाय को बहुत प्रिय है । अलसी या अलसी की खली को पीसकर उसकी पुलटिस बाँधने से सूजन बैठ जाती है, कच्चा फोड़ा शीघ्र पककर बह जाता है तथा उसकी पीड़ा शांत हो जाती है ।

अलसी ^२ पु वि॰ [हिं॰] दे॰ 'आलसी' । उ॰—राम सुभाव सुने तुलसी हुलसे अलसी हम से गलगाजे ।—तुलसी ग्रं॰, पृ॰ १९८ ।