अर्घ
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अर्घ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. षोडशोपचार में से एक । जल, दूध, कुशाग्र, दही, सरसों, तंडुल और जव को मिलाकर देवता को अर्पण करना ।
२. अर्घ देने का पदार्थ ।
३. जलदान । सामने जल गिराना ।
४. हाथ धोने के लिये जो जल दिया जाय ।
५. हाथ धोने के लिये जल देना ।
६. मूल्य । दाम ।
७. वह मोती जो एक धरण तौल में २५ चढ़े ।
८. भेंट ।
९. जल से संमानार्थ सींचना ।
१०. मधु । शहद ।
११. घोड़ा । अश्व । क्रि प्र॰—देना । करना । यौ॰—अर्घपाद्य = हाथ पैर घोने के निमित दिया जानेवाला जल ।
अर्घ वि॰ [सं॰] दे॰ 'अर्द्ध' ।