प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अरहर संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ आढ़की प्रा॰ अड़्ढकी]

१. एक अनाज जो दो दल के दाने का होता है । रहर । उ॰— सन सूख्यो बीत्यो बनौ, ऊखौ लई उखारि । हरी हरी अरहर आजों । धर धरहर हिय नारि ।—बिहारी (शब्द॰) ।

२. अरहर का बीज । तुवरी । तूअर । पर्या॰—तुवरी । वीर्य्या॰ । करवीरभुजा । बृत्तवीजा । पीतपुष्पा । काशीगृत्स्ना । मृतालका । सुराष्ट्रजंभा । विशेष—इसका पौधा चार पाँच हाथ ऊँचा होता है । इसकी एक एक सीके में तीन तीन पत्तियाँ होती है जो एक ओर हरी और दूसरी ओर भूरी होती है । इसका स्वाद कसैला होता है । मुँह आने पर लोग इसे चबाते है और फोड़े फुंसियों पर भी पीसकर लगाते है । अरहर की लकड़ियां जलाने और छप्पर छाने के कान आती है । इसकी टहनियों और पतले ड़ंठलों से खाँचे और दौरियां बनाई जाती है । अरहर बरसातमें बोई जाती है और अगहन पूसमें फूलती है । इसका फूल पीले रंगका होता है और फूल झड़ जाने पर इसमें डेढ़ दो इंच दालें होती हैं । हैं जिनमें चार पांच दाने होते हैं । गानों नें दो दालें होती हैं । इसके दो भेद हैं । एक छोटी दूसरी बड़ी । बड़ी को 'अरहरा' कहते है और छोटी को रयिमुनिया कहते है । छोटी दाल अच्छी होती है । अरहर फागुन में पकती है और चैत में काटी जाती है । पानी पाने से इसका पेड़ कई वर्ष तक हरा रह सकता है । भिन्न भिन्न देशों में इसकी कई जातियां होती है, जैसे रायपुर में 'हरोना' और 'मिही', बगल में 'मधवा' और 'चैती' तथा आसाम में 'पलवा', 'देव' या 'नली' ।