प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अभिनय संज्ञा पुं॰ [सं॰ वि॰ अभिनीति, अभिनेय] दूसरे व्यक्तियों के भाषण तथा चेष्टा को कुछ काल के लिये धारण करना । नाटय- मुद्रा । कालकृत अवस्थाविशेष । का अनुकरण । स्वाँग । नकल । नाटक का खेल । विशेष—इसके चार विभाग हैं— (क) आंगिक, जिसमें केवल अंग— भंगी वा शरीर की चेष्टा दिखाई जाय । (ख) वाचिक, जिसमें केवल वाक्यों द्वारा कार्य किया जाय । (ग) आहार्य, जिसमें केवल वाक्य या भूषण आदि के धारण की ही आवश्यकता हो, बोलने चालने का प्रयोजन न हो । जैसे, राजा के आस पास पगड़ी आदी बाँध कर चोबदार और मुसाहिबों का चुपचाप खड़ा रहना । (ग) सात्विक, जिसमें, स्त्री, स्वेद, रोमांच और कंप आदि अवस्थाओं का अनुकरण हो । क्रि॰ प्र॰— करना । — होना । मुहा॰— अभिनय करना=नाचना कूदना । यौ॰— अभिनयाचार्य=नृत्यकाला का शिक्षक क । नृत्यकलाविद् । अभिनयविद्या=नृत्यकला । नाटय कला ।